स्वर वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें इसके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। स्वर एक प्रकार के वर्ण हैं, और स्वतंत्र रूप से बोले गए शब्दों को स्वर (Swar In Hindi / Hindi Swar) कहते हैं। हिन्दी भाषा में कुल ग्यारह स्वर होते हैं। यह ग्यारह स्वर निम्नलिखित हैं, जो की: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ और औ हैं।
हिन्दी भाषा में ॠ को आधा स्वर माना / कहा जाता हैं। लेकिन ये स्वर नहीं होता हैं। और इसके साथ ही ऌ, अं और अः को स्वर में शामिल नहीं किया जाता हैं। हम आपको बता दें की ऍ और ऑ को भी विदेशी ध्वनियों को स्वर भी कहा जाता है, इस वजह से 13 स्वर होते हैं। और वहीं हिंदी व्याकरण के अनुसार केवल 11 स्वर ही होते हैं। प्रत्येक भाषा का आधार उसके वर्ण होते हैं। और हर किरदार की कोई न कोई स्क्रिप्ट (लिपि) होती है, जिसे वर्ण चिन्ह कहते हैं। वर्ण हिंदी भाषा में विभाजित हैं। वर्णों को बोलने में लगने वाले समय और मुंह और होठों की स्थिति के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा गया है।
आज हम आपको इस आर्टिकल में Swar In Hindi / Hindi Swar / Swar Vyanjan / Hindi Swar Vyanjan / Swar Vyanjan / Swar And Vyanjan / Swar Kise Kahate Hain / Hindi Swar and Vyanjan / स्वर किसे कहते हैं / Swar Kitne Prakar Ke Hote Hain / Swar Kitne Hote Hain / Hindi Swar With Pictures / Swar Hindi / स्वर वर्ण कितने होते हैं स्वरों के विभिन्न भेदों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। कृपया अंत तक पोस्ट ध्यानपूर्वक पढ़ें।
Swar In Hindi Ke Bhed Hote Hain
जिन वर्णों के उच्चारण के लिए किसी अन्य अक्षर या स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर (Swar In Hindi) कहलाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में प्रथम स्वरों की संख्या 14 थी। जो की निम्नलिखित अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ लृ, लृृृृ, ए, ऋ, ऐ, ओ और औ थे।
लृ और लृृृृ, और ऋ दोनों का अब उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार (Swar In Hindi) हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की संख्या अब 11 हो गई है।
स्वर पूर्ण ध्वनि हैं। और ध्वनि के उच्चारण में समय लगता है। तदनुसार, स्वरों को भी उच्चारण के समय के आधार पर विभाजित किया जाता है। इस प्रकार स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है। जो निम्नलिखित है:
Swar Kitne Prakar Ke Hote Hain
- ह्रस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
स्वर और उसके अंतर को समझने से पहले हमें पात्रों को समझना चाहिए। वर्ण हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण पाठ हैं। स्वर एक प्रकार के वर्ण हैं। जिसे हम इस लेख में विस्तार से समझने जा रहे हैं।
वर्ण भाषा की मूल इकाई हैं। जो आगे टूटा या छोटा न हो। अक्षर के उदाहरण अ, ई, च, व, क, ख इत्यादि हैं। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होते हैं। जिसे अधिक तोड़ना संभव नहीं है। वर्णों के समूह से शब्द बनते हैं। हर किरदार की एक स्क्रिप्ट होती है। जिसे चरित्र प्रतीक भी कहा जाता है। हिंदी भाषा में कुल 52 अक्षर होते हैं।
स्वर के कितने भेद होते हैं?
उच्चारण करने के समय (मात्रा) के आधार पर स्वर के कुल तीन भेद होते हैं, जिनमें हृस्व स्वर, दीर्घ स्वर एवं प्लुत स्वर शामिल हैं।
(a) हृस्व स्वर
उन स्वरों को हृस्व स्वरों में लिया गया है। जिसका उच्चारण करने में सबसे कम समय लगता है। स्वर के उच्चारण में कम समय लगने का मुख्य कारण एक मात्रा का होना है। ह्रस्व स्वरों के उदाहरण अ, इ, उ हैं। इन वर्णों में केवल एक मात्रा होती है। अंत में, उन्हें उच्चारण करने में दो मात्रा वाले स्वरों से कम समय लगता है। हम आपको बता दें की, एक मात्रा वाले स्वर ही केवल ह्स्व स्वर में गिने जाते हैं।
- हृस्व स्वर को लघु स्वर या छोटा स्वर या मूल स्वर के नाम से भी जाना जाता हैं।
- हृस्व स्वर को एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता हैं, क्यूंकि हस्व स्वरों में कोई मात्रा नहीं होती हैं।
अ | इ | उ | ऋ |
यह देखा जा सकता है कि यह स्वर का सबसे सामान्य अक्षर है। इन अक्षरों में केवल एक मात्रा होता है, जिसके कारण इनका उच्चारण करते समय दो मात्रा वाले स्वरों की तुलना में कम समय लगता है। हृस्व स्वर में केवल एक मात्रा वाले स्वरों की गणना की जाती है।
(b) दीर्घ स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक वक़्त लगता है। वे दीर्घ स्वरों में शामिल हैं। जैसे की आपको हम पहले ही ऊपर में बता चुके हैं की, ह्रस्व स्वर के स्वर में केवल एक मात्रा ही होती है।
लेकिन वहीं दीर्घ स्वर में एक के स्थान पर दो मात्राएँ होती हैं। दो मात्रा होने के कारण ही उनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा अधिक समय लगता है। दीर्घ स्वरों के उदाहरण आ, ई, ऊ हैं। आ शब्द को अ और अ को जोड़ कर बनता हैं. इसी प्रकार से अन्य भी निम्नलिखित उद्धरण निचे दिए गए हैं: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, इत्यादि
- अ + अ = आ
- इ + इ = ई
- उ + उ = ऊ
ऊपर देखा जा सकता है कि वे 2 शब्दों के मेल से बने हैं, इसलिए उनमें दो मात्राएँ हैं। नतीजतन, उनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर की तुलना में दोगुना समय लगता है।
- दीर्घ स्वर को आमतौर पर संधि स्वर के नाम से भी कहा या जाना जाता हैं।
- आपको बता दें की, गुरु / बड़ा / द्विमात्रिक होते हैं।
- दीर्घ स्वरों की दो मात्राएँ ही होती हैं।
(c) प्लुत स्वर
प्लुत स्वर ऐसे स्वर हैं, जिसका उच्चारण दीर्घ स्वरों से अधिक समय लेता है। प्लुत स्वरों का उच्चारण ह्रस्व स्वर से तीन गुना अधिक होता है। क्योंकि इसकी तीन मात्रा होती है। और वहीं प्लुत स्वरों का उच्चारण दीर्घ स्वर से दो गुना अधिक होता है।
प्लुत स्वर का सबसे बेहतर उदाहरण ‘ओउम’ शब्द है। और आप देख सकते हैं की, ओउम शब्द में कुल तीन मात्राएँ शामिल हैं। आमतौर पर हिंदी भाषा में तीन मात्राओं के अक्षरों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
लेकिन वैदिक भाषा में तीन खंड के शब्दों का प्रयोग किया जाता है। हम यहां अब आपको प्लुत स्वर के भी उदाहरण दे रहे हैं। ये खासकर के किसी को पुकारने एवं बुलाने के समय किया जाता हैं। जैसे की, राऽऽम, हेलो सुनोऽऽ, इत्यादि।
मात्रा: स्वरों के कुछ चिन्हों को आयतन कहते हैं। स्वर मात्रा संकेत सहित: अ, आ ( ा), इ ( ि), ई ( ी), उ (ु), ऊ (ू), ऋ (ृ), ए (े), ऐ (ै), ओ (ो), औ (ौ).
स्वर के मुख्य तीन भेदों के अतिरिक्त कुछ और भेद भी हैं।
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Hindi Swar | हिंदी स्वरों के भेद
दोस्तों हिंदी भाषा का जरूरी और सही ज्ञान हम सभी को होना चाहिए। आधिकारिक भाषा में अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी का भी काफी महत्व है, और किसी भी भाषा का सही ज्ञान होने के लिए उसके व्याकरण की अच्छी नॉलेज होना जरूरी होता है।
व्याकरण ही किसी भाषा का आधार होता है। जितना महत्व इंग्लिश ग्रामर का है उतना ही हिंदी व्याकरण का भी होना चाहिए। व्याकरण से उस भाषा की बेसिक नॉलेज और बेसिक नियम समझा जाता है।
जिह्वा के क्रियाशीलता के आधार पर स्वर कितने होते हैं?
- अग्र स्वर: जिन स्वरों में जीभ का अग्र भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘अग्र स्वर’ कहते हैं। जो की निम्न हैं: इ, ई, ए, ऐ, ॠ।
- मध्य स्वर: जिन स्वरों में जीभ का मध्य भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘मध्य स्वर’ कहते हैं। जो की निम्न हैं: अ।
- पश्च स्वर: जिन स्वरों में जीभ का पश्च भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘पश्च स्वर’ कहते हैं। जो की निम्न हैं: आ, उ, ऊ, ओ, औ।
जिह्वा के क्रियाशीलता के आधार पर स्वर कुल तीन प्रकार के होते हैं, जो की हम आपको ऊपर बता चुके हैं।
ओष्ठ / होंठ के आकृति के आधार पर स्वर कितने होते हैं?
ओष्ठ अथवा होंठ आकृति के आधार स्वर के कुल दो प्रकार होते हैं, जिनमे से पहला वृत्ताकार स्वर होता हैं, वहीं दूसरा अवृत्ताकार स्वर होता हैं।
(a) वृत्ताकार स्वर
वृत्ताकार स्वर को वृत्तमुखीं के नाम से भी जाना जाता है। यदि यह असंबद्ध है, तो ब्रुत +आकर है। इसकी कुल संख्या 4 है। जो की: उ, ऊ, ओ और औ होते हैं। ऐसे स्वर जो उच्चारण करते समय होठों के आकार में खुलते हैं, वृत्ताकार स्वर कहलाते हैं।
(b) अवृत्ताकार स्वर
अवृत्ताकार स्वर को आबृत्तमुखी के नाम से भी जाना जाता हैं। इन सभी स्वरों को उच्चारण करते समय होंठों के बृत्त के आकर में नहीं खुलते इन्हें अवृत्ताकार स्वर कहा जाता हैं। अवृत्ताकार स्वर अथवा आबृत्तमुखी स्वर के कुल संख्या 7 होते हैं, जो की निम्नलिखित हैं: अ ,आ ,इ ,ई ऋ ए और ऐ।
मुखाकृति / जीभ के उठने के आधार पर कितने स्वर होते हैं?
- संवृत स्वर: संवृत स्वर का अर्थ कम खुला होता है। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख कम खुला होता है, वे स्वर संवृत स्वर कहलाते हैं। जो की निम्न हैं: इ, ई, उ, ऊ।
- अर्द्धसंवृत स्वर: जिन स्वरों में मुख संवृत स्वर से थोड़ा ऊपर खुलता है उन्हें अर्द्धसंवृत स्वर कहते हैं। जो की निम्न है: ए, ओ।
- अर्द्धविवृत स्वर: जिन स्वरों का उच्चारण विवृत स्वर से थोड़ा नीचे और अर्द्धसंवृत से थोड़ा अधिक होने पर होता है, उन्हें अर्धवृत्ताकार स्वर / अर्द्धविवृत स्वर कहा जाता है। जो की निम्न हैं: अ, ऐ, औ।
- विवृत स्वर: विवृत का अर्थ है अधिक खुला। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख बहुत खुला होता है, उन्हें विवृत स्वर कहते हैं। जो की निम्न हैं: आ।
स्रोत के आधार पर स्वर का भेद
- (क) संयुक्त स्वर: नाम से ही ज्ञात होता है कि जो अक्षर दो या दो से अधिक स्वर वर्णों के मेल से बनता है, संयुक्त स्वर कहलाता है।
- अ / आ + इ / ई = ए ,
- अ / आ + ए = ऐ ,
- अ / आ + उ / ऊ = ओं,
- अ / आ + = औ
- (ख) मूल स्वर: स्वतंत्र स्वरों को मूल स्वर कहते हैं। जैसे की: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ।
उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर के भेद
- अनुनासिक स्वर: जब स्वरों का उच्चारण नासिका से किया जाता है, तो वे अनुनासिक स्वर कहलाते हैं। स्वरों के उच्चारण में ध्वनि मुख से तथा नासिका द्वार से भी निकलती है। इसलिए, अनुनासिकता प्रकट करने के लिए शिरोखा के ऊपर चंद्रबिंदु ( ँ) का उपयोग किया जाता है। लेकिन जब आवाज का आयतन भी शीर्षक से ऊपर हो तो सुविधा के लिए (स्थानाभाव के कारण) चंद्रबिंदु ( ँ) के स्थान पर केवल बिंदु (ॱ) रखा जाता है। इसके उदाहरण हैं: गाँव, दाँत, हैं, कहीं, आँगन, मैं, आँखें इत्यादि।
- निरनुनासिक स्वर: निरनुनासिक स्वर वे होते हैं, जिनकी ध्वनि केवल मुँह / मुख से निकलती हैं। इसके उदाहरण हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ।
- अनुनासिक ( ँ) और अनुस्वार (ॱ) में अन्तर: अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम और मुख से अधिक श्वास छोड़ी जाती है। जैसे की, आँसू, गाँव, आँत, चिड़ियाँ इत्यादि। लेकिन अनुस्वार के उच्चारण से नाक से अधिक और मुंह से कम निकलती है। जैसे की, अंक, पंच, अंश, अंग इत्यादि। अनुनासिक स्वरों की विशेषता अर्थात् अनुनासिक स्वरों पर चंद्र बिन्दु होता है। लेकिन, अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि है। अनुस्वार की ध्वनि को प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। तत्सम शब्दों में शुभता होती है, और उनके तद्भव रूपों में चंद्र बिंदु होता है। जैसे की, अंगुष्ठ से अँगूठा, अन्त्र से आँत, दन्त से दाँत इत्यादि।
- आगत स्वर: ‘ऑ’ (o) स्वर हिंदी का अपना नहीं है, यह अंग्रेजी में एक स्वर ध्वनि है। अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं के साथ उनकी बातचीत के कारण, उनके कई शब्द हिंदी में आए। चूंकि इन आने वाले शब्दों की ‘o’ ध्वनि के लिए हिंदी में कोई ध्वनि नहीं थी, इसलिए इस ध्वनि की आगत हुआ। यह केवल अंग्रेजी शब्दों में प्रयोग किया जाता है। जैसे की, कॉपी, ऑफ़िस, कॉलेज, डॉक्टर इत्यादि।
Hindi Varnamala — हिंदी स्वर की मात्रा
हिंदी स्वर | मात्रा |
---|---|
अ | |
आ | ा |
इ | ि |
ई | ी |
उ | ु |
ऊ | ू |
ऋ | ृ |
ए | े |
ऐ | ैै |
ओ | ो |
औ | ौ |
नोट- ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं है, यह व्यंजन में सन्निहित है। स्वरविहीन व्यंजन लिखने के लिए व्यंजन के नीचे हलंत चिन्ह ( ्) लगाया जाता है।
स्वर वर्णों के कुछ नियम
- नियम नंबर (क): किसी भी व्यंजन को स्वर रहित बनाने के लिए ‘हल्‘ चिन्ह का प्रयोग किया जाता है; यदि खड़ी पाई के व्यंजन का उपयोग किया जाता है, तो इसके पाई को हटाकर इसे बिना आवाज वाला भी बनाया जा सकता है। जैसे की: क+अ = ‘क्‘, या ट+अ = ‘ट्‘।
- नियम नंबर (ख): ‘र‘ के साथ ‘उ‘ की मात्रा जुड़कर ‘रु‘ बनता है।
- नियम नंबर (ग): ‘र‘ के साथ ‘ऊ‘ की मात्रा जुड़कर ‘रू‘ बनता है।
- नियम नंबर (घ): ‘एै’ के बजाय ‘ए’ का प्रयाग गलत है। उदाहरण के लिए, एैतिहासिक स्थान ऐतिहासिक होना चाहिए।
ऋ स्वर
‘ऋ’ स्वरों के योग से बोला जाता है। इसका उच्चारण ‘री’ के समान होता है। ‘ऋ’ शब्द का प्रयोग संगत शब्दों में ही किया जाता है। इसकी मात्रा ‘ृ’ है। जैसे: ऋण, घृत, ऋतु, ऋषि, आदि।
हिंदी स्वरों का वर्गीकरण
हिन्दी व्याकरण में स्वरों का वर्गीकरण इस प्रकार है।
जिह्वा की उत्थापित भाग के आधार पर
अग्रस्वर स्वर | इ, ई, ए, ऐ |
मध्य स्वर | अ |
पश्चस्वर | आ, उ, ऊ, ओ, औ |
जिह्वा की ऊचाई के आधार पर
विवृत | आ |
अर्द्ध विवृत | ऐ, औ |
अर्द्ध संवृत | ए, ओ |
संवृत | इ, ई, उ, ऊ |
शिथिल | अ, इ, उ |
कठोर | आ, ई, ऊ |
होंठ की स्थिति के आधार पर
प्रसृत | इ, ई, ए, ऐ |
वर्तुल | उ, ऊ, ओ, औ |
अर्धवर्तुल | आ |
Hindi Swar ka Vargikaran
- कण्ठ्य स्वर — अ, आ, अ:
- तालव्य स्वर — इ, ई
- मूर्धन्य स्वर — ऋ
- ओष्ठ्य स्वर — उ, ऊ
- अनुनासिक स्वर — अं
- कण्ठ्य तालव्य स्वर — ए, ऐ
- कण्ठयोष्ठ्य स्वर — ओ, औ
FAQ: Swar In Hindi
प्रश्न — Swar In Hindi स्वर किसे कहते हैं और क्या हैं?
उत्तर — फेफड़ों द्वारा बिना किसी रुकावट के मुख से बाहर आने पर जो वायु निकलती है, अर्थात् स्वर-ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे ही स्वर (Swar In Hindi) कहा जाता हैं।
प्रश्न — हिन्दी वर्णमाला किसे कहते हैं?
उत्तर — प्रत्येक भाषा की मूल ध्वनियों को लिखने के लिए कुछ ध्वनियाँ नियत की जाती हैं। उन ध्वनियों को ‘लिपि’ या ‘वर्ण’ कहा जाता है। ऐसे वर्णों के व्यवस्थित समूहन को ‘वर्णमाला’ कहते हैं।
प्रश्न — हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?
उत्तर — हिंदी वर्णमाला में कुल 44 स्वर और व्यंजन हैं।
Last Word:
हमारा मानना है कि, अब आप स्वर (Swar In Hindi) और Hindi Swar / हिंदी स्वर के सभी प्रकारों के बारे में पुरे अच्छी तरह जान अथवा समझ चुके हैं। लेकिन फिर भी स्वर के भेद के बारे में यदि आपके मन में किसी भी प्रकार का सवाल है।
तो आप अपना प्रश्न हमसे निचे कमेंट बॉक्स में Swar Vyanjan / Hindi Swar Vyanjan / से जुडी अपना सवाल के टिप्पणी कर हमसे पूछ सकते हैं। और हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न को हल करने में आपकी सहायता करेंगे। अगर आपको हमारा ये Swar In Hindi आर्टिकल पसंद आया हैं, तो कृपया इस पोस्ट (Swar In Hindi) को अपने दोस्तों के साथ अवश्य ही साझा करें, धन्यवाद दोस्त।