हिंदी वर्णमाला में कितने वर्ण हैं bhasha kitne prakar ke hote hain, sanyukt vyanjan kitne hote hain, varn kitne prakar ke hote hain, varn kitne prakar ke hote hain varn ke kitne prakar hote hain, sanskrit mein varn kitne prakar ke hote hain.
भाषा लिखने के लिए जिन प्रतीकों (वर्ण) का प्रयोग किया जाता है, उन्हें वर्णमाला कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में Alphabet शब्द का प्रयोग वर्णमाला के लिए किया जाता है। हिन्दी भाषा में कुल 52 अक्षर होते हैं, जिनके समूह को वर्णमाला कहते हैं। इसे नागरी या देवनागरी वर्णमाला भी कहते हैं।
अब हम आपको Varn Kitne Prakar Ke Hote Hain (वर्ण कितने प्रकार के होते हैं) के बारे में भी बता दें, तो दोस्तों, “वर्ण उस मूल ध्वनि को कहा जाता हैं, जिनका खंड नहीं हो सकता हैं।” अगर हम आपको वर्ण किसे कहते हैं के उदाहरण दे के बताएं तो, जैसे: ‘कलम’ तो जैसा के आप देख सकते हैं, यह शब्द कुल तीन ध्वनियों यानि की क, ल और म के मिलने के बाद बन रहा है।
अगर इसपर ध्यान दे तो, आप समझ पाएंगे के ये शब्द कुल छ: ध्वनियों से मिलकर बना हैं, जो की; क्+अ, ल्+अ और म्+अ हैं। अब इसके बाद इनको और टुकड़ों में विभाजित नहीं किया जा सकता हैं।
- कमल: क+म+ल = 03 ध्वनियाँ
- क्+अ+म्+अ+ल्+अ = 06 वर्ण
वर्ण किसे कहते हैं
मनुष्य द्वारा व्यक्त की गई ध्वनियों को भाषा कहा जाता है। भाषाविज्ञान के अनुसार मनुष्य द्वारा प्रकट की गई ध्वनियाँ प्रतीक शब्द से व्यक्त होती हैं जिसे ‘वर्ण‘ कहते हैं। भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के बोलना शब्द से हुई हैं। वर्ण हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होने वाली सबसे छोटी इकाई है और अक्षरों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन होते हैं। अक्षरों (स्वर और व्यंजन) के उच्चारण के आधार पर हिंदी में 45 वर्ण हैं। इनमें 10 स्वर और 35 व्यंजन हैं। लेखन के आधार पर 52 वर्ण हैं। इसमें 13 स्वर, 35 व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन हैं।
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि हैं, और ध्वनि को लिखित रूप में वर्ण द्वारा प्रकट किया जाता हैं, वर्ण शब्दों का उपयोग ध्वनि एवं ध्वनि चिन्ह के लिए किया जाता हैं। देवनागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित संकेत (वर्ण) होता हैं। इस तरह के वर्ण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों रूपों के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता हैं, इसे ही अक्षर भी कहा जाता हैं, तो वर्ण अथवा अक्षर वह छोटी से छोटी ध्वनि हैं, जिसके बाद अन्य कोई और टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं।
हिंदी भाषा की शुरुआत निम्नलिखित तरीके से हुई हैं: संस्कृति — पाली — प्राकृत — अपभ्रंश — अपहटटय — आधुनिक — हिंदी।
हिंदी भाषा में प्रयोग होने वाली सबसे छोटी ध्वनि को वर्ण कहा जाता हैं। ये मूल ध्वनि ही होती हैं, और इनको विभाजित नहीं किया जा सकता हैं। इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं; जो की, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क् और ख् इत्यादि। और हम आपको बता दें की, वर्णों के समूह को वर्णमाला कहा जाता हैं। इसी को अगर हम आपको दूसरे तरीको से बताएं तो, में किसी भी भाषा के सारे वर्णो के समूह को वर्णमाला कहा जाता हैं।
जैसे की आप पहले से ही जानते हैं की, हर एक भाषा की अपनी एक अलग ही वर्णमाला होती हैं। जैसे की, हिंदी भाषा की वर्णमाला में अ, आ, क, ख, ग, घ….ज्ञा इत्यादि हैं. और वहीं अंग्रेजी भाषा की वर्णमाला A, B, C, D, E….Z होते हैं। वर्ल्ड के कितने प्रकार होते हैं, हिंदी वर्ण कितने प्रकार के होते हैं, स्वर कितने प्रकार के होते हैं, वर्ण किसे कहते हैं, वर्ण कितने प्रकार के होते हैं उनके नाम, स्वर्ण वर्ण कितने प्रकार के होते हैं,
Varn Kitne Prakar Ke Hote Hain
हम आपको बता दें की, वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहा जाता हैं। और हिंदी वर्णमाला में कुल 44 वर्ण शामिल हैं। इनके उच्चारण एवं प्रयोग के आधार पर हिंदी वर्णमाला में वर्णों के दो प्रकार में बाँटा गया हैं। जिसमे पहला स्वर होता हैं, वहीं दुसरा व्यंजन होता हैं।
स्वर | Swar (Vowel)
वर्ण जो स्वतंत्र रूप से उच्चारित किए जाते हैं। अर्थात् इनके उच्चारण में किसी अन्य अक्षर की सहायता नहीं ली जाती है, इनकी कुल संख्या 13 होती है जबकि मुख्य रूप से इनकी संख्या 11 मानी जाती है। इन्हें स्वर कहते हैं। इसकी संख्या ग्यारह है।
जिन वर्णों के उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर कहलाते हैं। इसके उच्चारण में तालू, कंठ का प्रयोग होता है, जीभ एवं होंठ का नहीं। हिंदी वर्णमाला में कुल 16 स्वर है, हो की निम्नलिखित हैं। जैसे की; अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ, ऌ और ॡ।
हम आपको बता दें की, स्वर के कुल दो भेद होते हैं, जिसमें से एक मूल स्वर और दूसरा संयुक्त स्वर शामिल हैं।
मूल स्वर
हम आपको बता दें की, मूल स्वर के कुल तीन भेद होते है। जिसम ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर और प्लुत स्वर शामिल हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए और ओ मूल स्वर होते हैं।
मूल स्वर के भेद
- ह्रस्व स्वर: वे सभी स्वर जिनके उच्चारित करने में काफी कम समय लगता हैं, उनको ह्स्व स्वर कहा जाता हैं। और ह्रस्व स्वर के कुल चार प्रकार के होते होते हैं, जो की निम्न हैं; अ, आ, उ और ऋ हैं।
- हम आपको बता दें की, ‘ऋ’ की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती हैं, और इसको उच्चारित ‘रि’ की तरह किया जाता हैं।
- दीर्घ स्वर: वो सभी स्वर जिनको उच्चारित होने में ह्रस्व स्वर से दोगुना वक़्त लगता हैं, उनको दीर्घ स्वर कहा जाता हैं। अगर यहीं आसान ]शब्दों में कहा जाएँ तो, जिन स्वरों उच्चारण में ज्यादा समय लगता है उनको दीर्घ स्वर कहा जाता है। दीर्घ स्वर के कुल सात प्रकार होते है। जो की निम्न हैं: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ हैं।
- दीर्घ स्वर दो शब्दों से मिलकर बनते हैं। जैसे की;
- आ = (अ+अ)
- ई = (इ+इ)
- ऊ = (उ+उ)
- ए = (अ+इ)
- ऐ = (अ+ए)
- ओ = (अ +उ )
- औ = (अ+ओ)
- प्लुत स्वर: वो सभी स्वर जिनको उच्चारित करने में दीर्घ स्वर से भी ज्यादा वक़्त यानी तीन मात्राओं का वक़्त लगता हैं, उनको प्लुत स्वर कहा जाता हैं। अगर यही यहीं सरल शब्दों में कहें तो, “जिन स्वर के उच्चारण में तिगुना वक़्त लगता हैं, उनको ‘प्लुत’ कहा जाता हैं।”
- संयुक्त स्वर: ऐ (अ+ए) और औ (अ+ओ)
उच्चारण की आधार पर स्वर के भेद
- ह्रस्व स्वर: वो सभी स्वर जिनके उच्चारण में कम से कम वक़्त मय लगता हैं, उनको ह्रस्व स्वर कहा जाता हैं। इनको मूल स्वर भी कहा जाता हैं, आपको बता दें की ह्रस्व स्वर में कुल चार प्रकार होते हैं। जो की निम्न हैं; अ, आ, उ और ऋ।
- दीर्घ स्वर: वो सभी स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना वक़्त लगता हैं, उनको दीर्घ स्वर कहा जाता हैं। हिंदी वर्णमाला में कुल सात दीर्घ स्वर शामिल हैं। जो की निम्न हैं; आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ हैं।
- नोट: दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ पर दीर्घ शब्द का उपयोग उच्चारण में लगने वाले वक़्त को आधार मानकर किया गया हैं।
- प्लुत स्वर: वो सभी स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी ज्यादा वक़्त मय लगता हैं, उनको प्लुत स्वर कहा जाता हैं। आमतौर पर इनका उपयोग किसी को दूर से बुलाने में किया जाता हैं। प्लुत स्वर का चिह्न (ऽ) हैं, और इनका उपयोग अकसर किसी को पुकारते / बुलाने के समय किया जाता है। इसके निम्न उदाहरण हैं, जैसे की; सुनोऽऽ, ओऽऽम्, राऽऽम, इत्यादि।
- नोट: हिन्दी में ज़्यदातर प्लुत स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता हैं। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का उपयोग अधिक हुआ हैं। और इसको ‘त्रिमात्रिक स्वर’ भी कहा जाता हैं।
अं और अः को अयोगवाह कहा जाता हैं। हिंदी वर्णमाला में इसका स्थान स्वरों के बाद, एवं व्यंजनों से पहले होता हैं। अं को अनुस्वार और अः को विसर्ग कहा जाता हैं।
अनुनासिक, अनुस्वार, निरनुनासिक और विसर्ग
- अनुनासिक (ँ): वो सभी स्वर जिनके उच्चारित करने में नाक और मुँह का प्रयोग होता हैं, और उच्चारण में लघुता रहती हैं। उनको अनुनासिक कहा जाता हैं, इसके निम्न उदाहरण होते हैं, जो की; गाँव, आँगन, दाँत, साँचा इत्यादि।
- अनुस्वार (अं): ये स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन होता हैं, इनकी ध्वनि नाक से निकलती हैं। इसके निम्न उदाहरण होते हैं, जो की; अंगूर, कंकन, अंगद, इत्यादि।
- निरनुनासिक: वो सभी स्वर जिनके उच्चारित करने में, केवल मुँह/मुख से बोले जाने वाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहा जाता हैं। इसके निम्न उदाहरण होते हैं, जो की; इधर, आप, उधर, अपना, घर, इत्यादि।
- विसर्ग (अः): अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद ही आता हैं, आपको बता दें की, यह व्यंजन होता हैं और इनका उच्चारण ‘ह’ की तरह ही किया जाता हैं। संस्कृत में इसका काफी व्यवहार हैं। लेकिन, हिन्दी में अब इसका कमी होता जा रहा हैं , किन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है। इसके निम्न उदाहरण होते हैं, जो की; मनो:कामना, अतः, पयःपान, स्वतः, दुःख इत्यादि।
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व्यंजन | Vyanjan (Consonant)
वो सभी वर्ण जिनके पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की मदद ली जाती हैं, उनको व्यंजन कहा जाता हैं। अर्थात् स्वरों की सहायता के बिना व्यंजन नहीं बोले जा सकते। इनकी कुल संख्या 33 होती है। वे वर्ण व्यंजन वर्ण कहलाते हैं जिनका उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता के बिना नहीं किया जा सकता। अर्थात् स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले अक्षर व्यंजन वर्ण कहलाते हैं।
क, ख, ग, घ ऐसे अक्षर हैं जिनका उच्चारण हम स्वर अक्षरों के बिना नहीं कर सकते, इसलिए ये सभी अक्षर व्यंजन अक्षरों के अंतर्गत आते हैं। उदाहरण के लिए, ( क् + अ = क )के उच्चारण के लिए अ की आवश्यकता होती है। व्यंजन वर्णों के उदाहरण निम्न हैं; क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज,झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, म य, र, ल, व श, ष, स, ह, क्ष, त्र और ज्ञ व्यंजन वर्णों की सूची में आते हैं। हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की कुल संख्या 33 हैं। और इन सभी 33 व्यंजन वर्णों का उपयोग हिंदी भाषा में किया जाता हैं।
व्यंजन वर्ण मे मूल विभाजन के आधार पर व्यंजन वर्ण के चार भेद होते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं। पहला स्पर्श व्यंजन, दूसरा अन्त:स्थ व्यंजन, तीसरा ऊष्म व्यंजन और चौथा संयुक्त व्यंजन होते हैं।
स्पर्श व्यंजन (Sparsh Vyanjan)
उन व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहा जाता है, जब उच्चारण किया जाता है, तो जीभ उन उच्चारण स्थानों को छूती है जिनमें गले के तालु दांतों के मसूड़े तक आते हैं। इसी के कारण उन्हें स्पर्श व्यंजन का नाम मिला है। ये व्यंजन तब बनते हैं जब हमारी जीभ विभिन्न उच्चारण स्थानों से टकराती है। व्यंजन का उच्चारण करते समय जीभ / मुख के किसी भाग को स्पर्श करती हैं, जैसे की; कंठ, मूर्धा, तालु, दाँत इत्यादि।
वे वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। स्पर्श व्यंजन को कुल पाँच वर्गों में विभाजित हैं, और इसके साथ ही प्रत्येक वर्ग में पाँच व्यंजन शामिल हैं। हम आपको बता दें की, प्रत्येक वर्ग का नाम प्रथम श्रेणी के अनुसार रखा गया हैं। स्पर्श व्यंजनों की कुल संख्या 25 की होती हैं, जो की निचे दी गयी हैं।
क वर्ग | क्, ख्, ग्, घ्, ड़्। |
च वर्ग | च्, छ्, ज्, झ्, ञ्। |
ट वर्ग | ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण् (ड़्, ढ्)। |
त वर्ग | त्, थ्, द्, ध्, न्। |
प वर्ग | प्, फ्, ब्, भ्, म्। |
अन्त:स्थ व्यंजन (Antastha Vyanjan)
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ हमारे मुंह के किसी भी हिस्से को पूरी तरह से नहीं छूती है, यानी इन व्यंजनों का उच्चारण मुंह के भीतर से होता है, वे अंतःस्थ व्यंजन कहलाते हैं।
यानि की जैसे की आप अन्त शब्द का अर्थ जानते ही है, की इसका मतलब ‘भीतर’ होता हैं। उच्चारण के वक़्त में जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहता हैं, उनको अन्तःस्थ व्यंजन कहा जाता हैं। अन्त:स्थ व्यंजनों की कुल संख्या चार होती हैं। ये सभी व्यंजन वर्णों में से य, र, ल और व शामिल होते हैं।
ऊष्म व्यंजन (Ushm Vyanjan)
वे व्यंजन उष्म व्यंजन कहलाते हैं, जिनका उच्चारण करते समय उस्मा अर्थात् उष्मा उत्पन्न होती हैं। जब इनका उच्चारण किया जाता है तो मुख से निकलने वाली वायु के घिसने से वायु का निर्माण होता हैं।
यानि की जैसे की आप उष्म का अर्थ जानते ही हैं की इसका मतलब गर्म होता हैं। अर्थात वर्णो के उच्चारण के वक़्त हवा मुँह/मुख के अलग अलग भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दें, उनको उष्म व्यंजन कहा जाता हैं। इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं, जो की; श, ष, स, ह होते हैं।
कंठ्य (गले से) | क, ख, ग, घ, ङ। |
तालव्य (कठोर तालु से) | च, छ, ज, झ, ञ, य, श। |
मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) | ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष। |
दंत्य (दाँतों से) | त, थ, द, ध, न। |
वर्त्सय (दाँतों के मूल से) | स, ज, र, ल। |
ओष्ठय (दोनों होंठों से) | प, फ, ब, भ, म। |
दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) | व, फ। |
स्वर (यंत्र से) | ह। |
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संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan)
वे व्यंजन जो दो या दो से अधिक व्यंजनों से मिलकर बने हों, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। जैसा कि आपको इसके नाम से ही पता चल रहा हैं, की संयुक्त का मतलब जुड़कर या मिलकर होता हैं, इसीलिए 2 व्यंजनों के मेल से बना व्यंजन को संयुक्त व्यंजन कहा जाता हैं, संयुक्त व्यंजन चार होते हैं।
क्ष (क्+ष+अ) | (रक्षक, क्षोभ, भक्षक, क्षय)। |
त्र (त्+र+अ) | (पत्रिका, सर्वत्र, त्राण, त्रिकोण)। |
ज्ञ (ज्+ञ+अ) | (सर्वज्ञ, विज्ञान, ज्ञाता, विज्ञापन)। |
श्र (श्+र्+अ) | (श्रीमती, परिश्रम, श्रम, श्रवण)। |
हम आपको ये भी बताना चाहेंगे की, बहुत सरे लोग लोग क्ष्, त्र् एवं ज्ञ् को भी हिंदी वर्णमाला में ही गिनते हैं। लेकिन हम आपको ये बता दें की, यह संयुक्त व्यंजन हैं अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित नहीं होता हैं।
संस्कृत में स्वरों को अच् एवं व्यंजनों को हल् कहते हैं, आपको ये बता दें की व्यंजनों में दो वर्ण अतिरिक्त भी होते हैं।
- अनुस्वार व्यंजन: अनुस्वार का उपयोग पंचम वर्ण के स्थान पर किया जाता हैं, इसका मुख्य चिन्ह (ं) होता हैं। इसके निम्न उदाहरण हैं; सम्भव = संभव, सञ्जय = संजय, गन्गा = गंगा, इत्यादि।
- विसर्ग व्यंजन: विसर्ग व्यंजन का उच्चारण ह् के समान किया जाता हैं, और इसका चिह्न (:) होता हैं। इसके निम्न उदाहरण हैं; अतः, प्रातः, इत्यादि।
द्वित्व व्यंजन
जब कोई व्यंजन अपने व्यंजन से मेल खाता है, तो उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं। द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित और दूसरा व्यंजन स्वर वाला होता है। इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं, जो की निचे दिए गए हैं।
क् + क | पक्का |
च् + च | कच्चा |
म् + म | चम्मच |
त् + त | पत्ता |
संयुक्ताक्षर व्यंजन
जब एक स्वर रहित व्यंजन किसी व्यंजन को दूसरे स्वर से जोड़ता है तो उसे संयुक्ताक्षर व्यंजन कहते हैं।
क् + त = | क्त | संयुक्त |
स् + थ = | स्थ | स्थान |
स् + व = | स्व | स्वाद |
द् + ध = | द्ध | शुद्ध |
हम आपको ये बता दें की, ऊपर दिए गए उदाहरण, दो अलग अलग व्यंजन मिलकर कोई नया व्यंजन नहीं बना है।
वर्ण से संबंधित सवाल एवं उनके जवाब
- Que — वर्णमाला कहते हैं?
- A. शब्द-समूह को
- B. वर्णों के संकलन को
- C. शब्द गणना को
- D. वर्णों के व्यवस्थित समूह को
- Ans — (D) वर्णों के व्यवस्थित समूह को
- Que — भाषा की सबसे छोटी इकाई हैं?
- A. शब्द
- B. व्यंजन
- C. स्वर
- D. वर्ण
- Ans — (D) वर्ण
- Que — निम्न में से कंठ्य ध्वनियाँ कौन सी हैं?
- A. क, ख
- B. य, र
- C. च, ज
- D. ट, ण
- Ans — (A) क, ख
- Que — हिंदी वर्णमाला में अयोग वाह वर्ण कौन से हैं?
- A. अ, आ
- B. इ, ई
- C. उ, ऊ
- D. अं, अः
- Ans — (D) अं, अः
- Que — निम्न में बताइए कि किस शब्द में द्वित्व व्यंजन हैं?
- A. पुनः
- B. इलाहाबाद
- C. दिल्ली
- D. उत्साह
- Ans — (C) दिल्ली
- Que — कौन सा अमानक वर्ण हैं?
- A. ख
- B. च
- C. भ
- D. ठ
- Ans — (C) भ
- Que — निम्लिखित में कौन ट वर्ग नहीं हैं?
- A. क्ष
- B. ष
- C. ध
- D. ज्ञ
- Ans — (C) ध
- Que — हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या हैं?
- A. 32
- B. 34
- C. 33
- D. 36
- Ans — (C) 33
- Que — हिंदी वर्णमाला में स्वरों की कुल संख्या कितनी हैं?
- A. 10
- B. 11
- C. 12
- D. 13
- Ans — (D) 13
- Que — ‘क्ष’ ध्वनि किसके अंतर्गत आती हैं?
- A. मूल स्वर
- B. मोष वर्ण
- C. संयुक्त वर्ण
- D. तालव्य
- Ans — (C) संयुक्त वर्ण
- Que — हिंदी में मूलतः वर्णों की संख्या कितनी हैं?
- A. 50
- B. 51
- C. 52
- D. 53
- Ans — (C) 52
- Que — इनमें संयुक्त व्यंजन कौन-सा हैं?
- A. क्ष
- B. ष
- C. ध
- D. ज्ञ
- Ans — (D) ज्ञ
- Que — निम्लिखित में से कौन-सा वर्ण उच्चारण की दृष्टि से दन्त्य नहीं हैं?
- A. त
- B. न
- C. द
- D. ट
- Ans — (D) ट
- Que — व्यंजनों के कितने भेद हैं?
- A. 3
- B. 4
- C. 5
- D. 6
- Ans — (C) 5
- Que — ‘च’ व्यंजन का उच्चारण कैसा है?
- A. अघोष
- B. सोघष
- C. मघोष
- D. खघोष
- Ans — (A) अघोष
- Que — दो या दो से अधिक व्यंजनों के संयोग को कहते हैं?
- A. समूह
- B. व्यंजन गुच्छ
- C. मिलन
- D. संयोग
- Ans — (B) व्यंजन गुच्छ
वर्गों के उच्चारण स्थान
वर्ण नाम | उच्चारण स्थान | वर्ण ध्वनि का | |
1. | अ,आ,क वर्ग और विसर्ग | कंठ कोमल तालु | कंठ्य |
2. | इ, ई, च वर्ग, य, श | तालु | तालव्य |
3. | ऋ, ट वर्ग,र्,ष | मूर्धा | मूर्धन्य |
4. | लु, त वर्ग, ल, स | दन्त | दन्त्य |
5. | उ, ऊ, प वर्ग | ओष्ठ | ओष्ठ्य |
6. | अं, ङ, ञ, ण, न्, म् | नासिका | नासिक्य |
7. | ए,ऐ | कंठ तालु | कंठ – तालव्य |
8. | ओ, औ | कंठ ओष्ठ | कठोष्ठ्य |
9. | व | दन्त ओष्ठ | दन्तोष्ठ्य |
10. | ह | स्वर यन्त्र | अलिजिहवा |
वर्ण और ध्वनि में अंतर
वर्ण विचार व्याकरण का वह भाग है जिसमें अक्षरों का आकार, भेद, उच्चारण और लक्षण वर्णन शब्द बनाने के नियमों का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी अक्षर पर विचार करने से पहले ध्वनि और रंग के बीच संबंध को समझना महत्वपूर्ण है। वर्ण को ध्वनि चिन्ह भी कहा जाता है लेकिन इनमें अंतर है।
जहाँ वर्ण का उपयोग लिखने, पढ़ने एवं देखने के लिए होता हैं, वहीं ध्वनि का उपयोग बोलने एवं सुनने के लिए होता। जैसे की; अ, आ, इ, ई एवं क, ख, ग, घ इत्यादि इनको जब मुख/मुँह से बोला जाता हैं, तब इनको ध्वनियाँ कहा जाता हैं। वहीं इनके लिखित रूप को ‘वर्ण’ (varn) कहा जाता हैं।
किन्हीं दो या दो से अधिक भाषाओं के वर्णानुक्रम में अंतर हो सकता है लेकिन कोई मुखर अंतर नहीं है। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी कंप्यूटर और हिंदी कंप्यूटर के बीच कोई ध्वनि अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों एक ही प्रकार की ध्वनियां हैं। लेकिन लिखित रूप में, दोनों भाषाओं के चिह्न पूरी तरह से अलग हैं, इसलिए वर्णानुक्रम में अंतर है।
Last Word:
तो मेरे प्यारे दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल में व्याकरण से जुडी बहुत महत्वपूर्ण विषय वर्ण के बारे में जाना, साथ ही इस पोस्ट में हमने वर्ण के कितने भेद होते हैं? (Varn Ke Kitne Bhed Hote Hain?), वर्ण क्या है?, वर्ण कितने प्रकार के होते हैं? (Varn Kitne Prakar Ke Hote Hain?) इस आर्टिकल में हम वर्ण के कितने भेद होते हैं? और वर्ण कितने प्रकार के होते हैं? इसके बारे में बहुत ही विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान करने की हर सम्भव कोशिस किया।
हमें पूर्ण विश्वास हैं की, आपको हमारा ये पोस्ट अवश्य ही पसंद आया होगा। अगर आपको हमारा पोस्ट को पढ़कर आपको वर्ण कितने प्रकार के होते हैं? वर्ण कितने प्रकार के होते हैं?, Bhasha Kitne Prakar Ke Hote Hain, Hindi Varnmala Mein Kitne Varn Hote Hain, वर्ण किसे कहते हैं? वर्ण के कितने भेद होते हैं के बारे में थोड़ी से भी मदद मिलीं हो तो, तो कृपया हमारा ये पोस्ट अपने दोस्तों एवं परिजनों के बिच अवश्य ही शेयर करें।
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